ट्रंप के टैरिफ से IPhone होगा महंगा! जानें कितने बढ़ सकते हैं दाम?

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Posted On:Monday, April 7, 2025

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा वैश्विक व्यापार नीति के तहत लागू किए गए टैरिफ चार्ट ने वैश्विक महंगाई के हालात को गंभीर बना दिया है। टैरिफ के इस नए कदम का सीधा असर उपभोक्ता उत्पादों पर पड़ता नजर आ रहा है, जिसमें सबसे प्रमुख नाम Apple iPhone का है। विश्लेषकों की मानें तो इन टैरिफों के चलते आने वाले समय में आईफोन की कीमतों में भारी इजाफा हो सकता है, और यह $2000 (लगभग 1,71,243.40 रुपये) से भी अधिक हो सकती है।

आज की दुनिया में iPhone एक स्टेटस सिंबल बन चुका है। हर वर्ग का व्यक्ति इसे खरीदने की ख्वाहिश रखता है, लेकिन इसकी कीमतों में संभावित वृद्धि आम जनता के लिए इसे और भी दूर की कौड़ी बना सकती है। iPhone निर्माण में चीन की बड़ी भूमिका है। अधिकतर iPhone डिवाइसेज चीन में बनाए जाते हैं, लेकिन चीन भी इनके निर्माण के लिए विभिन्न देशों से कलपुर्जे आयात करता है। ट्रंप की नीति के कारण इन कलपुर्जों पर लगने वाले अतिरिक्त शुल्क से लागत में भारी इजाफा होगा, जिससे iPhone की कीमतें आसमान छू सकती हैं।

TechInsights के एनालिस्ट वेन लैम की रिपोर्ट के मुताबिक, iPhone की मैन्यफैक्चरिंग कॉस्ट में 43% तक की वृद्धि हो सकती है। यह बढ़ोतरी केवल कच्चे माल और कलपुर्जों के महंगे होने की वजह से नहीं है, बल्कि इसमें मैन्यफैक्चरिंग, टेस्टिंग और ओवरहेड खर्च भी शामिल हैं। वर्तमान में iPhone 16 के बेस मॉडल की कीमत $799 है, लेकिन इस बढ़ी हुई लागत के चलते इसकी कीमत $1500 तक पहुंच सकती है। टॉप मॉडल iPhone 16 Pro Max, जो 1TB वेरिएंट है, उसकी कीमत $1599 से $2300 के बीच जा सकती है।

विश्लेषकों का मानना है कि इस टैरिफ नीति से न केवल Apple, बल्कि अन्य टेक कंपनियों पर भी असर पड़ेगा। अमेरिका की यह नीति खास तौर पर चीन पर केंद्रित है, जो इलेक्ट्रॉनिक मैन्यफैक्चरिंग में अग्रणी है। लेकिन इसका प्रभाव पूरी सप्लाई चेन पर पड़ेगा, क्योंकि Apple के डिवाइस बनाने के लिए जिन पार्ट्स की जरूरत होती है, वे कई देशों से आते हैं।

उदाहरण के तौर पर, iPhone के रियर कैमरा की कीमत करीब $127 है, और यह जापान में बनाया जाता है। वहीं, प्रोसेसर ताइवान से आता है जिसकी लागत लगभग $90 है, जबकि डिस्प्ले साउथ कोरिया से आता है जिसकी कीमत करीब $38 है। iPhone में इस्तेमाल होने वाली मेमोरी चिप अमेरिका में बनती है, जिसकी कीमत लगभग $22 है। इन सभी देशों पर लगे टैरिफ और शुल्कों की वजह से प्रोडक्ट की कुल लागत में उल्लेखनीय वृद्धि होना तय है।

एक दिलचस्प तथ्य यह है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान जब चीन के खिलाफ टैरिफ लगाए गए थे, तब Apple को कुछ हद तक छूट दी गई थी। लेकिन इस बार Apple को अपने प्रोडक्ट्स के निर्माण में किसी तरह की राहत नहीं दी गई है। इससे यह स्पष्ट है कि Apple जैसे बड़े ब्रांड्स भी अमेरिकी टैरिफ नीति के असर से अछूते नहीं रहेंगे।

टैरिफ का असर सिर्फ हार्डवेयर पर नहीं पड़ेगा, बल्कि इसका असर सॉफ्टवेयर डेवेलपमेंट और डिवाइस की सप्लाई चेन पर भी देखा जा सकता है। Apple iPhone 16 में जिन नए फीचर्स की बात की जा रही है, जैसे Apple Intelligence, एडवांस प्रोसेसर, बेहतर बैटरी और कैमरा क्वालिटी – इन सबका लाभ तभी मिल सकता है जब डिवाइस आम आदमी की पहुंच में हो।

लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या आम उपभोक्ता इतनी भारी कीमत चुका कर नया iPhone खरीद पाएगा? जहां एक ओर तकनीकी नवाचारों को अपनाने की होड़ है, वहीं दूसरी ओर बढ़ती कीमतें आम ग्राहकों के बजट पर भारी पड़ सकती हैं।

अर्थशास्त्रियों के अनुसार, टैरिफ एक ऐसा यंत्र है जिसका उपयोग देश अपनी आर्थिक नीतियों को सुदृढ़ करने के लिए करता है, लेकिन इसका नकारात्मक प्रभाव उपभोक्ताओं और वैश्विक व्यापार पर पड़ता है। खास तौर पर टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री, जहां हर हिस्सा किसी न किसी देश से आता है, वहां टैरिफ सप्लाई चेन को प्रभावित करता है और लागत को बढ़ा देता है।

Apple के लिए यह स्थिति एक बड़ी चुनौती बन सकती है। कंपनी को या तो अपनी प्रॉफिट मार्जिन में कटौती करनी होगी या फिर उपभोक्ताओं पर इसकी कीमत डालनी होगी। दोनों ही विकल्प कंपनी के लिए कठिन हैं। साथ ही, यह भी देखा जा रहा है कि अन्य ब्रांड्स जैसे Samsung, Xiaomi और Google भी इस स्थिति से जूझ रहे हैं, लेकिन Apple का मामला इसलिए गंभीर है क्योंकि यह प्रीमियम ब्रांड है और इसकी कीमतों में मामूली बढ़ोतरी भी ग्राहकों को झटका दे सकती है।

टैरिफ की वजह से Apple को अपने मैन्यफैक्चरिंग बेस को भी रीलोकेट करने की जरूरत पड़ सकती है। भारत, वियतनाम और मैक्सिको जैसे देश इसके लिए संभावित विकल्प हो सकते हैं, जहां निर्माण लागत अपेक्षाकृत कम है और अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्ते भी बेहतर हैं। Apple ने भारत में iPhone निर्माण की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं, लेकिन पूरी तरह से शिफ्ट होना एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है।

सारांश के तौर पर कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति ने वैश्विक टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री को एक चुनौतीपूर्ण मोड़ पर ला खड़ा किया है। Apple जैसी कंपनियों को अपने व्यापार मॉडल, सप्लाई चेन और कीमत निर्धारण रणनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा। वहीं, उपभोक्ताओं को यह तय करना होगा कि क्या वे तकनीकी उन्नति के लिए इतनी भारी कीमत चुकाने को तैयार हैं। आने वाला समय बताएगा कि क्या Apple इस चुनौती का सामना कर पाएगा या फिर इसका फायदा उसके प्रतिस्पर्धी ब्रांड्स उठा लेंगे।


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