रूसी तेल का निर्यात रुका तो दुनिया की बिगड़ जाएगी अर्थव्यवस्था, भारत के लिए कितना नुकसानदायक?

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Posted On:Thursday, August 14, 2025

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया टैरिफ फैसलों ने वैश्विक व्यापार और ऊर्जा बाजारों में हलचल मचा दी है। ट्रंप द्वारा भारत सहित कई देशों पर 50% टैरिफ लगाने की घोषणा ने सूरत जैसे भारत के औद्योगिक शहरों में व्यापारियों की चिंता बढ़ा दी है। हालांकि असली चिंता अब रूसी तेल निर्यात को लेकर जताई जा रही है। अगर रूस से तेल का निर्यात पूरी तरह रोक दिया गया, तो यह न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिरता को खतरे में डाल सकता है

रूस से तेल का निर्यात क्यों है महत्वपूर्ण?

रूस दुनिया के सबसे बड़े कच्चे तेल निर्यातकों में से एक है। वैश्विक आपूर्ति में इसकी करीब 10% हिस्सेदारी है। ऐसे में रूस से तेल आपूर्ति में किसी भी तरह की रुकावट का सीधा असर अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के दाम पर पड़ेगा।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर रूस से तेल का निर्यात बंद हुआ तो ग्लोबल क्रूड ऑयल प्राइस 80 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जा सकता है। ऐसे में पूरी दुनिया को ऊर्जा संकट, मुद्रास्फीति में उछाल, और आर्थिक मंदी जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।

भारत पर इसका कितना असर?

बैंक ऑफ बड़ौदा की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत पर इस स्थिति का सीमित असर होगा। अनुमान के मुताबिक, यदि रूस से तेल का निर्यात रुकता है तो भारत को सालाना लगभग 5 अरब अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ सकता है। हालांकि यह आंकड़ा भारत की मौजूदा अर्थव्यवस्था के हिसाब से प्रबंधनीय माना जा रहा है।

2021-22 में रूस से भारत का तेल आयात नगण्य था। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने रूस से सस्ते दरों पर तेल खरीदना शुरू किया। इससे भारत को ऊर्जा की कीमतों में स्थिरता बनाए रखने में मदद मिली। अब यदि रूस से आपूर्ति बाधित होती है, तो भारत को नाइजीरिया, कुवैत, इराक और ब्राजील जैसे देशों से विकल्प तलाशने होंगे।

वैश्विक असर और तेल बाजार का संतुलन

जून 2025 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत के लिए औसतन कच्चे तेल की कीमत लगभग 69 डॉलर प्रति बैरल रही। जबकि नाइजीरिया, रूस, ब्राजील और कुवैत जैसे देश भारत को 70 डॉलर प्रति बैरल से कम दर पर तेल दे रहे थे। इन विकल्पों के बावजूद, अगर रूस पूरी तरह निर्यात रोक देता है, तो तेल की वैश्विक मांग और आपूर्ति का संतुलन गड़बड़ा सकता है।

इसके अलावा, विकसित देशों में ऊर्जा महंगाई, ईंधन की कमी और उत्पाद लागत में वृद्धि** के कारण आर्थिक तनाव की स्थिति बन सकती है।


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