अमेरिका में ट्रंप सरकार द्वारा लिए गए विवादास्पद फैसलों के खिलाफ एक और महत्वपूर्ण झटका आया है। इस बार मामला हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और विदेशी छात्रों के अधिकारों से जुड़ा था। ट्रंप प्रशासन ने एक ऐसा निर्देश जारी किया था जिसमें हार्वर्ड और अन्य विश्वविद्यालयों को विदेशी छात्रों की निगरानी करने और उनकी गतिविधियों की जानकारी अमेरिकी एजेंसियों को देने का आदेश दिया गया था। इस आदेश के बाद विदेशी छात्रों के नामांकन को लेकर अनिश्चितता पैदा हो गई थी। लेकिन कोर्ट के हस्तक्षेप से इस पर फिलहाल रोक लगा दी गई है, जिससे हजारों अंतरराष्ट्रीय छात्रों को राहत मिली है।
कोर्ट का सख्त रुख: छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
इस फैसले पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश एलिसन बरोघ्स ने साफ तौर पर कहा कि ट्रंप प्रशासन का यह आदेश छात्रों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है और यह शैक्षणिक स्वतंत्रता (academic freedom) को भी प्रभावित करता है। उन्होंने कहा कि जब तक इस मामले पर पूरी कानूनी समीक्षा नहीं हो जाती, तब तक हार्वर्ड या किसी अन्य विश्वविद्यालय को विदेशी छात्रों के दाखिले पर कोई पाबंदी नहीं लगाई जा सकती।
न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि शैक्षणिक संस्थानों को छात्रों की निजी गतिविधियों पर निगरानी करने के लिए मजबूर करना, लोकतांत्रिक मूल्यों और शिक्षा की आत्मा के खिलाफ है।
ट्रंप प्रशासन की नीति और हार्वर्ड की आपत्ति
ट्रंप प्रशासन ने यह प्रस्ताव रखा था कि विदेशी छात्रों की गतिविधियों, सोशल मीडिया पोस्ट्स और किसी भी “चरमपंथी या संदिग्ध विचारधारा” को ट्रैक किया जाए और इसकी रिपोर्ट एजेंसियों को सौंपी जाए। यह तर्क दिया गया था कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।
हालांकि, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा कि यह न केवल असंवैधानिक है बल्कि इससे विश्वविद्यालय की ग्लोबल साख और अकादमिक आज़ादी पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
कोर्ट में हार्वर्ड की दलीलें
हार्वर्ड ने अदालत में यह भी कहा कि ट्रंप सरकार का यह फैसला बेहद अचानक लिया गया है और नियमों के अनुसार, विश्वविद्यालयों को इस तरह के किसी भी परिवर्तन के लिए कम से कम 30 दिन का नोटिस दिया जाना चाहिए। इसके बिना उन्हें छात्रों की भर्ती और अकादमिक सत्र की योजना में गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
इसके अलावा, हार्वर्ड ने यह भी तर्क दिया कि ट्रंप प्रशासन का यह निर्णय विदेशी छात्रों के अमेरिका आने की प्रक्रिया को अनावश्यक रूप से कठिन बना देगा और इससे अमेरिका की उच्च शिक्षा प्रणाली की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचेगा।
विदेशी छात्रों को बड़ी राहत
कोर्ट के इस फैसले के बाद, हजारों ऐसे अंतरराष्ट्रीय छात्र जो अमेरिका में पढ़ाई की तैयारी कर रहे थे, उन्हें राहत मिली है। यह फैसला खासकर उन छात्रों के लिए अहम है जो आगामी शैक्षणिक सत्र में वीजा प्रक्रिया और दाखिले की अनिश्चितता से परेशान थे।
व्यापक प्रभाव
यह मामला केवल हार्वर्ड या किसी एक संस्थान तक सीमित नहीं है। यह अमेरिका की समूची उच्च शिक्षा व्यवस्था पर असर डाल सकता था। अमेरिका के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में हर साल लाखों विदेशी छात्र पढ़ाई के लिए आते हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था, शोध और सांस्कृतिक विविधता में अहम योगदान देते हैं।
निष्कर्ष
यह मामला एक बार फिर दर्शाता है कि अमेरिकी न्यायपालिका लोकतांत्रिक मूल्यों, नागरिक अधिकारों और शैक्षणिक आजादी की रक्षा करने में कितनी सजग है। ट्रंप प्रशासन के कई फैसले हाल के दिनों में अदालतों में चुनौती के घेरे में आए हैं, और यह ताजा फैसला उसी श्रृंखला का एक और उदाहरण है।
संक्षेप में, यह फैसला अमेरिका आने के इच्छुक विदेशी छात्रों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है और शैक्षणिक संस्थानों के संवैधानिक अधिकारों की भी पुष्टि करता है। अब देखना होगा कि इस मामले में आगे क्या रुख अपनाया जाता है, लेकिन फिलहाल छात्रों और विश्वविद्यालयों के लिए यह एक बड़ी जीत मानी जा रही है।