जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान जाने के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए 23 अप्रैल को सिंधु जल संधि को स्थगित करने का ऐलान किया। यह फैसला एक कड़ा संदेश है कि भारत अब आतंकवाद के साथ-साथ उन समझौतों पर भी पुनर्विचार करेगा जो शांति और सहयोग की भावना से जुड़े थे, लेकिन जिनका सम्मान पाकिस्तान की ओर से नहीं किया जा रहा।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया: "जल अधिकारों से कोई समझौता नहीं"
भारत के इस कदम के बाद पाकिस्तान में हड़कंप मच गया है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसीम मुनीर ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पाकिस्तान अपने "जल अधिकारों" से किसी भी हालत में समझौता नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान के 24 करोड़ नागरिकों के मूल अधिकारों से जुड़ा मामला है और इस पर समझौते का सवाल ही नहीं उठता।
मुनीर ने भारत पर वर्चस्व की राजनीति का आरोप लगाया और कहा कि पाकिस्तान भारतीय आधिपत्य को स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत बलूचिस्तान में आतंकवाद को समर्थन दे रहा है और वहां की अस्थिरता में उसकी भूमिका है।
भारत की दो टूक: आतंकवाद और बातचीत साथ नहीं
भारत ने पाकिस्तान के इन आरोपों और बयानों पर सख्त प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने साफ-साफ कहा, “आतंकवाद और बातचीत साथ नहीं चल सकते।” उन्होंने कहा कि जब तक पाकिस्तान सीमापार आतंकवाद को समर्थन देता रहेगा, तब तक किसी भी प्रकार की बातचीत का प्रश्न ही नहीं उठता।
जायसवाल ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत की पाकिस्तान से बातचीत केवल दो अहम बिंदुओं पर केंद्रित होगी:
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पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) को भारत को सौंपना।
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आतंकवाद पर ठोस और निर्णायक कार्रवाई।
भारत ने पाकिस्तान को पहले ही उन वांछित आतंकवादियों की सूची सौंपी हुई है जिन्हें भारत सौंपने की मांग करता है, लेकिन अब तक उस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
सिंधु जल संधि: क्या है इसका महत्व?
सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी, जिसके तहत भारत ने पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर नियंत्रण पाकिस्तान को दिया और पूर्वी नदियों (रावी, सतलुज, ब्यास) का उपयोग भारत को मिला। यह समझौता अब तक दोनों देशों के बीच चले आ रहे कुछ स्थायी समझौतों में से एक माना जाता रहा है, लेकिन हालिया आतंकवादी हमले के बाद भारत ने इसे स्थगित करने का निर्णय लिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही कह चुके हैं कि "आतंक और वार्ता एक साथ नहीं चल सकते, आतंक और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते, और पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते।" यह बयान अब भारत की नीति का स्पष्ट संकेत बन गया है।
पाकिस्तान में मतभेद
दिलचस्प बात यह है कि जहां एक ओर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भारत के साथ शांति वार्ता की इच्छा जताते हैं, वहीं पाकिस्तान की सेना और ISI भारत पर आरोप लगाने और धमकी देने से पीछे नहीं हटते। इससे साफ पता चलता है कि पाकिस्तान में खुद नीति निर्धारण को लेकर मतभेद हैं।
निष्कर्ष
भारत ने इस बार स्पष्ट कर दिया है कि अब नीतियों में "रणनीतिक सहनशीलता" नहीं, बल्कि "रणनीतिक प्रतिरोध" की नीति अपनाई जाएगी। सिंधु जल संधि का स्थगन इस दिशा में एक निर्णायक कदम है। पाकिस्तान चाहे जितनी भी बयानबाजी कर ले, भारत अब केवल उन्हीं मुद्दों पर बातचीत करेगा जो उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता से जुड़े हैं।
अब सवाल यह है कि पाकिस्तान अपनी आतंकी नीति से पीछे हटता है या फिर खुद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और भी अधिक अलग-थलग करवा लेता है। भारत ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है — अब शब्दों से नहीं, काम से होगा जवाब।