मुंबई, 09 दिसंबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा मोरीगांव में एक जनसभा में कहा, कि उनकी सरकार चाहती है कि प्रवासी मुस्लिम के बच्चे मदरसों में पढ़कर जुनाब, इमाम बनने के बजाय डॉक्टर और इंजीनियर बनें। अगर असमिया हिंदू परिवारों के डॉक्टर हैं तो मुस्लिम परिवारों के भी डॉक्टर होने चाहिए। सरमा ने कहा, कई विधायक ऐसी सलाह नहीं देते क्योंकि उन्हें 'पोमुवा' मुसलमानों के वोट चाहिए। उन्होंने कहा, हमारी नीति साफ है, हम सभी का विकास चाहते हैं। हम ये नहीं चाहते कि मुस्लिमों के बच्चे खासकर 'पोमुवा' मुस्लिम मदरसों में पढ़ने जाएं और वहां से 'जुनाब' और 'इमाम' बनकर निकलें। सरमा ने लोकसभा सांसद बदरुद्दीन अजमल के उस बयान की भी आलोचना की, जिसमें उन्होंने हिंदुओं को कम उम्र में शादी करने और बच्चे पैदा करने की सलाह दी थी। सरमा ने कहा, “भारत में रहने वाले पुरुष को तीन-चार महिलाओं से शादी करने का अधिकार नहीं है जब तक वह पहली पत्नी को तलाक नहीं दे देता। अगर मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनने के लिए कहा जाता है, तो लड़के भी ऐसा क्यों नहीं करते। बता दें कि पूर्वी बंगाल या बांग्लादेश से आए बंगाली भाषी मुसलमानों को असम में 'पोमुवा मुस्लिम' कहा जाता है।
दरअसल, धुबरी सांसद अजमल ने 2 दिसंबर को एक इंटरव्यू में 'लव जिहाद' पर मुख्यमंत्री की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया दी थी। अजमल ने कहा था, 40 साल की उम्र के बाद वे माता-पिता के दबाव में शादी करते हैं। इसलिए, कोई कैसे उम्मीद कर सकता है कि वे 40 के बाद बच्चे पैदा करेंगे? वे (हिन्दू) भी मुसलमानों के फॉर्मूले पर चलकर अपने बच्चों की शादी 20-22 साल की उम्र में करें। लड़कियों की शादी 18-20 साल में करें और फिर देखिए कितने बच्चे पैदा होते हैं। हालांकि विवाद बढ़ता देखकर सांसद ने अगले दिन माफी मांग ली थी।
तो वहीं, मुख्यमंत्री ने आगे कहा, असम में, हमारे पास बदरुद्दीन अजमल जैसे कुछ नेता हैं। वे कहते हैं कि महिलाओं को जल्द से जल्द बच्चों को जन्म देना चाहिए क्योंकि वह एक उपजाऊ खेत की तरह हैं। महिला के प्रसव की तुलना किसी खेत से नहीं की जा सकती है। मैंने बार-बार कहा है कि महिलाएं 20-25 बच्चों को जन्म दे सकती हैं, लेकिन उनका खाना, कपड़ा, पढ़ाई और अन्य सभी खर्च अजमल को वहन करना होगा। फिर, हमें कोई समस्या नहीं है। परफ्यूम कारोबारी से लोकसभा सांसद बनकर भी बच्चों का खर्चा नहीं दे सकते हैं तो किसी को बच्चे के जन्म पर व्याख्यान देने का अधिकार नहीं है। हम केवल उतने ही बच्चे पैदा करेंगे, जिन्हें हम पेट भरकर खिला सकें और उन्हें बेहतर इंसान बना सकें।