देश में इन दिनों वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर जबरदस्त बहस चल रही है। एक तरफ इस कानून का विरोध करने वाले लोग इसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर अतिक्रमण बता रहे हैं, तो दूसरी तरफ समर्थन करने वाले इसे पारदर्शिता और न्यायपूर्ण व्यवस्था की दिशा में बड़ा कदम मान रहे हैं। इसी बहस के बीच, गुरुवार को दाऊदी बोहरा समुदाय के एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की, और इस अधिनियम को लेकर उनका आभार जताया।
पीएम मोदी से क्यों मिला दाऊदी बोहरा समुदाय का डेलिगेशन?
दाऊदी बोहरा समुदाय लंबे समय से वक्फ से जुड़ी समस्याओं को लेकर मुखर रहा है। समुदाय का कहना रहा है कि वक्फ से संबंधित पुराने कानूनों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी थी, जिससे कई बार भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की शिकायतें सामने आती थीं। वक्फ संशोधन अधिनियम में बदलाव कर सरकार ने इन समस्याओं के समाधान की दिशा में पहल की है।
इसी संदर्भ में, दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री से मुलाकात कर न केवल अधिनियम के लिए आभार जताया, बल्कि “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास” की नीति में अपनी आस्था भी जताई। उन्होंने पीएम मोदी के नेतृत्व में देश के समावेशी विकास की सराहना की और भरोसा जताया कि सरकार सभी वर्गों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
प्रधानमंत्री मोदी का आश्वासन
इस मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया कि उनकी सरकार सभी धर्मों, समुदायों और वर्गों के हितों की रक्षा के लिए कार्य कर रही है। पीएम मोदी ने यह भी कहा कि सरकार का उद्देश्य है कि किसी के साथ अन्याय न हो और सभी को समान अवसर मिले।
प्रतिनिधिमंडल ने यह भी बताया कि वक्फ संशोधन अधिनियम उनकी लंबे समय से लंबित मांग थी, जिसे केंद्र सरकार ने पूरा कर समुदाय की भावनाओं का सम्मान किया है। इससे समुदाय को न केवल कानूनी सुरक्षा मिली है, बल्कि सामाजिक रूप से भी उन्हें मजबूती मिली है।
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सुप्रीम कोर्ट में चल रही है सुनवाई
गौरतलब है कि वक्फ संशोधन बिल संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेजा गया था। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह विधेयक अब कानून बन चुका है। हालांकि, इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जिन पर सुनवाई चल रही है।
विरोध करने वाले संगठनों और याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून वक्फ बोर्ड की शक्तियों में कटौती करता है और इससे अल्पसंख्यक समुदाय की संपत्तियों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। वहीं, सरकार और समर्थन करने वाले समुदायों का तर्क है कि यह संशोधन वक्फ संपत्तियों की पारदर्शिता, जवाबदेही और प्रशासनिक नियंत्रण को बेहतर बनाने के लिए जरूरी था।
सामाजिक और राजनीतिक मायने
वक्फ संशोधन अधिनियम का मुद्दा राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील है। एक ओर यह मुस्लिम समुदाय के धार्मिक मामलों से जुड़ा है, वहीं दूसरी ओर सरकार की inclusive governance नीति की भी परीक्षा है। ऐसे में दाऊदी बोहरा समुदाय जैसे प्रभावशाली और शिक्षित समुदाय का समर्थन सरकार के लिए सकारात्मक संदेश देता है।
दाऊदी बोहरा समुदाय लंबे समय से भारत की मुख्यधारा से जुड़ा हुआ है और प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनके रिश्ते भी पहले से मधुर रहे हैं। इससे पहले भी जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब से ही बोहरा समुदाय के साथ उनके रिश्ते मजबूत माने जाते रहे हैं।
निष्कर्ष
वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर देश में भले ही मतभेद हो, लेकिन यह स्पष्ट है कि सरकार ने इससे जुड़े कई समुदायों की पुरानी मांगों को स्वीकार करते हुए इसमें बदलाव किए हैं। दाऊदी बोहरा समुदाय का समर्थन इस बात का संकेत है कि यह संशोधन सभी के लिए नकारात्मक नहीं है, बल्कि कुछ समुदाय इसे एक सकारात्मक पहल के रूप में देख रहे हैं।
अब देखने वाली बात यह होगी कि सुप्रीम कोर्ट इस अधिनियम पर क्या निर्णय देता है और इसका लंबे समय में समाज और राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है। लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर पीछे हटने के मूड में नहीं है, और सभी वर्गों का विश्वास जीतने की कोशिश कर रही है।